About the Shri Radha Astmi

श्री राधा रानी जी निकुंज के एक सुन्दर मंदिर में अवतीर्ण हुईं हैं। उस समय भाद्र का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल 12 बजे और सोमवार का दिन था। इनके जन्म के साथ ही इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा।
राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी हैं । 
 श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात बहुत पीड़ा पहुंचती है कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। 
कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती हैं, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी अब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।
शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने वृन्दावन में श्री कृष्ण के साथ साक्षात राधा का विधिपूर्वक विवाह संपन्न कराया था। बृज में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण बिना श्री राधा। 
राधाको भगवान कृष्ण की शक्ति स्वरूपा भी माना जाता है , जो स्त्री रूप मे प्रभु के लीलाओं मे प्रकट होती हैं |"गोपाल सहस्रनाम" के 19वें श्लोक मे वर्णित है कि महादेव जी देवी पार्वती जी को बताते हैं कि एक ही शक्ति के दो रूप है राधा और माधव(श्रीकृष्ण) । अर्थात राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं। ।राधे राधे।।

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