सत्य क्यों बोलना
चाहिए- आदि आदि बिन्दुओं पर
जब विचार मन में आए, तब उन
सबका एक ही उत्तर है...*सत्य*
*परमात्मा का ही स्वरूप है।*
सत्य अनादि, अनंत, कालजयी,
शाश्वत तथा सर्वमान्य है। सत्य
बोलने से धर्म का पालन होता है,
क्योंकि सत्य और धर्म का सीधा
सम्बन्ध है। सत्य धर्म का आधार
है। सत्य कभी भी परिवर्तनशील
नहीं हो सकता। यह अविनाशी
है। सत्य सर्वमान्य व सभी काल-
खंडों में विद्यमान है। सभी ग्रन्थ,
सभी पंथ एवं सभी सम्प्रदाय इस
एक बात पर सहमत हैं कि ईश्वर
प्राप्ति का एकमात्र साधन सत्य
ही है।यह केन्द्रीय तत्व तथा ब्रह्म-
स्वरूप है और ज्ञानमय है। इसकी
शक्ति व प्रभाव अनन्त, अपरिमित
व निरंतर है। सत्य सिर्फ कहने या
सुनने का कोई विषय नहीं है, वरन
जीवन में उतारने की वस्तु है
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